भारत के लिए एक और महत्वपूर्ण सफ़लता

7 09 2008

आज भारत ने एक महत्वपूर्ण सफ़लता हासिल कर ली जब ४५ सदस्य देशों वाले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) ने भारत को संगठन के किसी भी सदस्य देश से असैनिक इस्तेमाल के लिए परमाणु ईंधन खरीदने की छूट प्रदान की। एनएसजी के कुछ सदस्यों के क्ड़े प्रारंभिक विरोध के बावजूद, अंततः इस समझौते को क्लीन चिट दे दी गई। इस छूट से भारत के लिए ३४ साल लंबे हाशिए पर रखे जाने वाले उस दौर का अंत हो गया है जो कि १९७४ के पहले परमाणु परीक्षण के बाद शुरू हुआ था।

दुर्भाग्यवश, भारत के कई राजनीतिक दल (जिनमें से कुछ का मैं प्रशंसक भी हूँ), इस समझौते का विरोध कर रहे हैं। इस आधार पर कि, यह समझौता भारत की संप्रभुता को ताक पर रख कर किया गया है।  उनका तर्क है कि, यदि भारत एक परमाणु हथियार का परीक्षण करता है, तो अमेरिका ( और एनएसजी ) इस समझौते से हट जाएंगे और सभी अप्रयुक्त ईंधन हमें लौटाना होगा। मुझे तो यह हास्यास्पद लगता है। वे क्या उम्मीद कर रहे हैं? क्या पूरा विश्व यह कह दे कि उन्हें इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि भारत परमाणु हथियारों का परीक्षण करता रहे? यह बड़ा ही बेढंगा तर्क है। यदि आप उम्मीद करते हैं परीक्षण करने का अधिकार हमारे पास हो, तो आपको यह समझना होगा कि ऐसी स्थिति में बाकी दुनिया को प्रतिक्रिया करने का अधिकार होना ही चाहिए। मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ भी गलत है।

मैं एक और कदम और आगे बढ़कर कहूँगा कि, यह सरासर राजनीतिक नेताओं की अपरिपक्वता है। या तो वे इस समझौते को समझ नहीं रहे हैं या वे कोशिश कर रहे हैं कि गन्दी राजनीति के खेल से राष्ट्र को भ्रमित करें। पहली बात तो यह कि इस समझौते में या एनएसजी के छूट दस्तावेज़ में ऐसा कोई खंड नहीं है जो कहे कि भारत एक परमाणु परीक्षण नहीं कर सकता है। इस आशय के अन्य समझौते हैं जिनपर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जैसे कि गैर अप्रसार संधि (एनपीटी) और व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी)। यदि भारत को एनपीटी या सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया होता तो, मैं भी दूसरे पक्ष में शामिल होकर कहता कि एक राष्ट्र के रूप में भारत की संप्रभुता में सेंध लगाई गई है। यह बिलकुल सरल और स्पष्ट है, यदि जरूरत पड़ी, तो हमें परीक्षण करने के लिए हर अधिकार है,  और बाकी दुनिया को उस पर प्रतिक्रिया का अधिकार है। हमें भारतीय और अमेरिका के राजनयिकों की प्रशंशा करनी चहिए कि उन्होने बिना भारत के परमाणु परीक्षण के अधिकार से समझौता किए एनएसजी से यह छूट हासिल कर ली।

परमाणु परीक्षणों को अलग रखकर यदि सोचें तो, आज जब हम आधुनिक ऊर्जा स्रोतों के दीर्घकालिक उपयोग की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, यह समझौता भारत के असैनिक परमाणु कार्यक्रम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। एनएसजी से छूट मिलने के बाद, भारत अपनी बढ़ती हुई ऊर्जा जरूरतों को पूरा के लिए परमाणु ईंधन खरीद सकता हैं; न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका से, बल्कि एनएसजी के किसी भी देश से।

यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा की ओर कदम बढ़ाएं। इससे देश के आर्थिक विकास में मदद मिलेगी। मैं इस संबंध मे कुछ आँकड़े सामने रखना चाहूंगा जो भारत में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न  ऊर्जा  का प्रतिशत दर्शाते हैं (स्रोत expert-eyes.org)| निम्न तालिका देखें

स्रोत लाख वाट प्रतिशत
कोयला ७३४९२.३८ ५३.१५८४१८४६
डीजल १२०१.७५ ०.८६९२४८३४१
गैस १४५८१.७१ १०.५४७२२४६५
कुल ( कार्बन ईंधन पर आधारित ) ८९२७५.८४ ६४.५७४८९१४५
पवन और अक्षय ऊर्जा १०१७५.०३ ७.३५९७९०२६१
परमाणु ४१२० २.९८००७३३६३
पन ३४६८०.७६ २५.०८५२४४९३
कुल १३८२५१.६३ १००

इस तालिका में लाल रंग से दर्शाई गई लाइन आश्चर्यजनक है। यह तब है जब अनेकों गांवों और अधिकतर दूसरी श्रेणी के शहरों को रोजाना काफ़ी देर तक बिना बिजली के रहना पड़ता है। यदि हम अपने औद्योगिक विकास को ज़ारी रखना और भारत के आम आदमी के जीवन स्तर को बेहतर बनाना चाहते हैं तो हमें अपने लोगों को भरपूर ऊर्जा साधनों से परिपूर्ण बनाना होगा। इस सौदे से हमें ऐसा कर पाने में मदद मिलेगी। मुझी पूरा विश्वास है कि यह एक सही कदम है। इससेहमारी ऊर्जा आवश्यकताएँ न सिर्फ़ पूरी होंगी बल्कि हम ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को भी सीमित कर पाएँगे।

इस पोस्ट का English संस्करण मेरे दूसरे ब्लॉग पर उपलब्ध है।





महात्मा – मेरी नज़र से

2 10 2007

एक बच्चे की नज़र से मैं हमेशा गाँधीजी से नफ़रत करता था। ऐसे कारणों से जो आज मुझे इतने सहज नहीं लगते। उस समय मैं इस बात को समझ नहीं पाता था कि कैसे कोई सुभाष चन्द्र बोस को सहयोग नहीं कर सकता था वो भी ऐसे समय में जबकि वो अंग्रेज़ों के साथ आर पार की लड़ाई लड़ रहे थे? कोई कैसे बिना जवाब दिए रह सकता था जबकि मासूम लोगों को जेलों में बंद कर उन्हें यातनाएं दी जा रहीं थीं। यहाँ तक कि उन्हें जान से भी मारा जा रहा था। ये कुछ ऐसे सवाल थे जो एक ऐसे बच्चे के मन में उठ रहे थे जो अहिंसा के सिद्धांत की महानता को समझ नहीं सकता था। कभी कभी तो मैं इस हद तक चला जाता था कि मैं गाँधीजी की हत्या करने के लिए नाथूराम गोडसे का आभार मानता था।

मुझे कुछ ठीक से याद नहीं कि ये कब की घटना है। मैं किसी से गाँधीजी के विषय में चर्चा कर रहा था और काफ़ी गर्मागर्म बहस चल रही थी (मैं यहाँ पर देना चाहता हूँ कि मैं उस चर्चा में काफ़ी उद्दंड था). इसी बीच उन्होनें एक ऐसी बात कही जो मेरे मन को गहरे तक छू गई। उन्होनें कहा “एक बिलकुल साफ़ सफ़ेद कपड़ा लो और फ़िर उसपर स्याही की कुछ बून्दें छिड़क दो। उसके बाद किसी को भी वो कपड़ा दिखाओ और उनसे पूछो कि वो क्या देख रहे हैं। सभी का जवाब एक ही होगा – स्याही की कुछ बून्दें। शायद ही कोई उस सफ़ेद कपड़े की तरफ़ ध्यान देगा लेकिन किसी की नज़र से स्याही की वो कुछ बून्दें नहीं बचेंगी।” “गाँधीजी एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जो हमारी विवेचना से परे है। अकसर हम इस देश के लिए किए हुए उनके अनगिनत कामों को भूल जाते हैं और अपनी नज़रों को उनकी कमियों पर ही गड़ाए रखते हैं।” इस विचार ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। ये कोई चमत्कारी बात नहीं थी। लेकिन इसने मुझे चीज़ों की तरफ़ देखने का एक अलग नज़रिया दिया। एक नज़रिया जिसे कुछ लोग “Dimensional Thinking” या “Perspective Thinking” कहते हैं।

इस घटना के बाद मैंने गाँधीजी और उनके समय के इतिहास के बारे में काफ़ी पढ़ा। मुझे उस समय जो कुछ भी मिल सका मैनें लगभग वो सभी कुछ पढ़ डाला। गाँधीजी की आलोचनाएँ, उनकी प्रशंसा, उनपर बाहरी लोगों के विचार, यहाँ तक कि उनके बारे में कुछ अंग्रेज़ अधिकारियों के विचार भी।

आज मुझे लगता है कि मैं कुछ हद तक ये समझ पाया हूँ कि गाँधीजी क्या थे और अपने विचारों के ज़रिये उन्होंने हमारे समाज, हमारे देश और यहाँ तक कि पूरी दुनिया पर क्या असर डाला है। गाँधीजी जैसी महान शख्शियत को समझने की कोशिश करते समय हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिये – गाँधीजी भगवान नहीं थे। वो भी एक इन्सान थे। और एक इन्सान से ऐसी उम्मीद करना कि वो कभी ग़लती कर ही नहीं सकता – एक भारी भूल है। ग़लतियाँ सबसे होती हैं। हमारे अंदर इतनी समझ होनी चाहिए कि हम पूरे परिदृश्य को देखें न कि अपनी सोच को सिर्फ़ उन ग़लतियों तक ही सीमित रखें जो शायद गाँधीजी से हुई थीं (यदि मैं ऐसी कोई बात कहने का दुस्साहस करूँ)।

आज जबकि मैं ये लिख रहा हूँ, मैं ये जानता और समझता हूँ कि बहुत सारे ऐसे लोग हैं (जिनमें सिर्फ़ युवा ही शामिल नहीं) जो ये समझते हैं कि गाँधीवादी विचारधाराएँ आज के समय में किसी काम की नहीं है। आज गाँधीजी के १३८वें जन्मदिन पर मैं ये कहना चाहता हूँ कि मैं अपने ब्लॉग पर गाँधीजी  के बारे में निबंधों की एक श्रंखला लिखूंगा। यह एक प्रयास होगा लोगों को बताने का कि कैसे गाँधीजी के विचार आज भी हमारी जीवनशैली को बदल सकते हैं और हमें ये सिखा सकते हैं कि हम कैसे इस दुनिया को बेहतर और सुरक्षित बना सकते हैं।

इस निबंध का अंग्रेज़ी संस्करण मेरे दूसरे ब्लॉग पर उपलब्ध है।





कर्मभूमि क्या है?

19 09 2007

जब मैं स्कूल में पढ़ा करता था, तबसे ही मेरी ईच्छा थी कि मैं अपने देश, अपने लोगों के लिए कुछ कर सकूं। जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया, मेरी ये ईच्छा और बलवती होने लगी। मैं समझता हूँ कि अब समय आ गया है कि मैं अपनी इस ईच्छा को पूरा करने की दिशा में कुछ करूं। मेरी समस्या ये है कि  अभी मैं अपना १००% समय इस काम में लगा नहीं सकता। तो अपने रोजमर्रा के काम करते हुए देश के लिये कुछ करने के लिये मुझे कोई रास्ता तलाश करना था। मैं समझता हूँ कि हम जो भी पढ़ते या लिखते हैं, उसका हमारे मन पर ज्यादा न सही फ़िर भी थोड़ा तो असर होता ही है (कम से कम मुझपर तो यह बात लागू होती है)। तो मैने सोचा कि क्यूं न अपने विचारों को लिखा जाये? कर्मभूमि की शुरुआत इसी मकसद से हुई है।

मैं चाहता हूँ कि आम लोग भी, जिन्हें English का ज्यादा  ज्ञान नहीं है वो भी मेरी बातों को जान सकें। इसीलिये मैनें हिन्दी में लिख्नने का फ़ैसला लिया। और हिन्दी भी ऐसी जो आम बोलचाल में इस्तेमाल होती है न कि शुद्ध साहित्यिक हिन्दी (जिसे समझना शायद आसान न्हीं होगा)।

सारी बातों का सार यही है, कि कर्मभूमि एक प्रयास है जिसके माध्यम से मैं अपने विचार लोगों तक पहुँचाना चाहता हूँ। आशा है कि लोग मेरे विचारों को पढ़ेंगे, समझेंगे और शायद उनसे सहमत भी होंगे।