आज भारत ने एक महत्वपूर्ण सफ़लता हासिल कर ली जब ४५ सदस्य देशों वाले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) ने भारत को संगठन के किसी भी सदस्य देश से असैनिक इस्तेमाल के लिए परमाणु ईंधन खरीदने की छूट प्रदान की। एनएसजी के कुछ सदस्यों के क्ड़े प्रारंभिक विरोध के बावजूद, अंततः इस समझौते को क्लीन चिट दे दी गई। इस छूट से भारत के लिए ३४ साल लंबे हाशिए पर रखे जाने वाले उस दौर का अंत हो गया है जो कि १९७४ के पहले परमाणु परीक्षण के बाद शुरू हुआ था।
दुर्भाग्यवश, भारत के कई राजनीतिक दल (जिनमें से कुछ का मैं प्रशंसक भी हूँ), इस समझौते का विरोध कर रहे हैं। इस आधार पर कि, यह समझौता भारत की संप्रभुता को ताक पर रख कर किया गया है। उनका तर्क है कि, यदि भारत एक परमाणु हथियार का परीक्षण करता है, तो अमेरिका ( और एनएसजी ) इस समझौते से हट जाएंगे और सभी अप्रयुक्त ईंधन हमें लौटाना होगा। मुझे तो यह हास्यास्पद लगता है। वे क्या उम्मीद कर रहे हैं? क्या पूरा विश्व यह कह दे कि उन्हें इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि भारत परमाणु हथियारों का परीक्षण करता रहे? यह बड़ा ही बेढंगा तर्क है। यदि आप उम्मीद करते हैं परीक्षण करने का अधिकार हमारे पास हो, तो आपको यह समझना होगा कि ऐसी स्थिति में बाकी दुनिया को प्रतिक्रिया करने का अधिकार होना ही चाहिए। मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ भी गलत है।
मैं एक और कदम और आगे बढ़कर कहूँगा कि, यह सरासर राजनीतिक नेताओं की अपरिपक्वता है। या तो वे इस समझौते को समझ नहीं रहे हैं या वे कोशिश कर रहे हैं कि गन्दी राजनीति के खेल से राष्ट्र को भ्रमित करें। पहली बात तो यह कि इस समझौते में या एनएसजी के छूट दस्तावेज़ में ऐसा कोई खंड नहीं है जो कहे कि भारत एक परमाणु परीक्षण नहीं कर सकता है। इस आशय के अन्य समझौते हैं जिनपर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जैसे कि गैर अप्रसार संधि (एनपीटी) और व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी)। यदि भारत को एनपीटी या सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया होता तो, मैं भी दूसरे पक्ष में शामिल होकर कहता कि एक राष्ट्र के रूप में भारत की संप्रभुता में सेंध लगाई गई है। यह बिलकुल सरल और स्पष्ट है, यदि जरूरत पड़ी, तो हमें परीक्षण करने के लिए हर अधिकार है, और बाकी दुनिया को उस पर प्रतिक्रिया का अधिकार है। हमें भारतीय और अमेरिका के राजनयिकों की प्रशंशा करनी चहिए कि उन्होने बिना भारत के परमाणु परीक्षण के अधिकार से समझौता किए एनएसजी से यह छूट हासिल कर ली।
परमाणु परीक्षणों को अलग रखकर यदि सोचें तो, आज जब हम आधुनिक ऊर्जा स्रोतों के दीर्घकालिक उपयोग की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, यह समझौता भारत के असैनिक परमाणु कार्यक्रम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। एनएसजी से छूट मिलने के बाद, भारत अपनी बढ़ती हुई ऊर्जा जरूरतों को पूरा के लिए परमाणु ईंधन खरीद सकता हैं; न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका से, बल्कि एनएसजी के किसी भी देश से।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा की ओर कदम बढ़ाएं। इससे देश के आर्थिक विकास में मदद मिलेगी। मैं इस संबंध मे कुछ आँकड़े सामने रखना चाहूंगा जो भारत में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा का प्रतिशत दर्शाते हैं (स्रोत expert-eyes.org)| निम्न तालिका देखें
स्रोत | लाख वाट | प्रतिशत |
कोयला | ७३४९२.३८ | ५३.१५८४१८४६ |
डीजल | १२०१.७५ | ०.८६९२४८३४१ |
गैस | १४५८१.७१ | १०.५४७२२४६५ |
कुल ( कार्बन ईंधन पर आधारित ) | ८९२७५.८४ | ६४.५७४८९१४५ |
पवन और अक्षय ऊर्जा | १०१७५.०३ | ७.३५९७९०२६१ |
परमाणु | ४१२० | २.९८००७३३६३ |
पन | ३४६८०.७६ | २५.०८५२४४९३ |
कुल | १३८२५१.६३ | १०० |
इस तालिका में लाल रंग से दर्शाई गई लाइन आश्चर्यजनक है। यह तब है जब अनेकों गांवों और अधिकतर दूसरी श्रेणी के शहरों को रोजाना काफ़ी देर तक बिना बिजली के रहना पड़ता है। यदि हम अपने औद्योगिक विकास को ज़ारी रखना और भारत के आम आदमी के जीवन स्तर को बेहतर बनाना चाहते हैं तो हमें अपने लोगों को भरपूर ऊर्जा साधनों से परिपूर्ण बनाना होगा। इस सौदे से हमें ऐसा कर पाने में मदद मिलेगी। मुझी पूरा विश्वास है कि यह एक सही कदम है। इससेहमारी ऊर्जा आवश्यकताएँ न सिर्फ़ पूरी होंगी बल्कि हम ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को भी सीमित कर पाएँगे।
इस पोस्ट का English संस्करण मेरे दूसरे ब्लॉग पर उपलब्ध है।