सपने

15 12 2008

आजकल संसार की जो स्थिति है, मैं उससे बहुत दु:खी हूँ।मेरी आँखों में आंसू आ जाते हैं जब मैं अपने बचपन के उन दिनों को याद करता हूँ जब हमें धर्म या सम्प्रदाय के बारे में कुछ नहीं पता था। तब जीवन का केवल एक ही ध्येय हुआ करता था – प्रसन्न रहना और अपने आस-पास के सभी लोगों को प्रसन्न रखना। तब से अब तक, चीजें काफ़ी बदल गई हैं। और दुर्भाग्यवश स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़्ती ही जा रही है। अपने व्यथित मन के विचारों को हिंदी/उर्दू की कुछ पंक्तियों के रूप में लिखने की मैंने चेष्टा की है।

मैं इसे यहां पर प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस आशा में कि, शायद लोग न केवल मेरे, बल्कि मेरे जैसे  लाखों करोड़ों के मन के क्रन्दन को सुन सकेंगे।

हमें शान्ति चाहिए।