मेरा परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रह्नने वाला था। मेरे दादाजी कई दशकों पहले मुम्बई आए थे और तब से हम यहीं के हो कर रह गये। अब मैं खुद मुम्बई का रहने वाला हूँ और मुम्बई शहर से (आम तौर पर कह सकते हैं कि पूरे महाराष्ट्र से) मुझे अतिशय प्रेम है। अब लगभग २ साल हो गये हैं मुझे मुम्बई से बाहर रह्ते हुए लेकिन, आज भी जब कभी मुम्बई या महाराष्ट्र के किसी भी हिस्से की बात होती है तो, मेरा मन अपनी कर्मभूमि के लिए मचल उठता है !
इस विवाद की शुरुआत सबसे पहले बालासाहेब ठाकरे ने की थी। हालांकि अब शिवसेना इस बात को खुले तौर पर स्वीकार नहीं करती कि वो हिन्दी का विरोध करते हैं। खै़र, वो पुरानी बात थी। राज ठाकरे ने अपनी राजनीति चलाने के लिये एक बार फ़िर वही मुद्दा उठाया और मराठी अस्मिता की ठेकेदारी शुरू कर दी। जब मामला थोड़ा शांत हो रहा था तब आज जया बच्चन ने एक गैर जिम्मेदराना बयान दे कर फ़िर से आग में घी डालने का काम किया है। हालांकि ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि बात उन्होंने मज़ाक में कही थी। लेकिन वो भी एक मंझी हुई राजनेता हैं। उन्हें कम से कम इतना सोचना चाहिए था कि राज ठाकरे जैसे मौकापरस्त लोगों को तिल का ताड़ बनाने की आदत होती है।
वैसे ज़ाती तौर पर मेरा मानना है कि जैसे शिवसेना या मनसे मराठी अस्मिता के ठेकेदार नहीं हैं, वैसे ही बच्चन परिवार या समाजवादी पार्टी हिन्दी भाषी लोगों के ठेकेदार नहीं हैं। समय समय पर मुम्बई वसियों ने इस बात को प्रमाणित किया है कि वे एक दूसरे की मान्यताओं का आदर करते हैं और सदा ही एक दूसरे की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। हमारी एकता को न तो राज ठाकरे तोड़ सकते हैं और न जया बच्चन या उनके राजनैतिक सहयोगी। मेरी ऐसे लोगों से प्रार्थना है कि आम लोगों को अपनी रोज़ाना की ज़रूरतों को पूरा करने में ही लगे रहने दें। समय समय पर गैर-ज़रूरी बयानबाज़ी कर के माहौल ख़राब न करें।
इसके साथ ही मैं एक और बात कहना चाहूँगा। मैं राज ठाकरे के हिंसक तरीकों समर्थन नहीं कर रहा लेकिन ये सोचने वाली बात है। यदि आप किसी जगह पर दसियों सालों से रह रहे हैं तो क्या आप को वहां के लोगों और वहां की मान्यतओं का सम्मान नहीं करना चाहिए? क्या आपकी नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि कम से कम वहां की भाषा का सम्मान करें? कम से कम मुझे लगता है कि ऐसा होना चाहिए। मैं अपने आप को मुम्बईकर तभी कह सकता हूँ जब मैं मुम्बई, मुम्बई के लोगों और महाराष्ट्र की अस्मिता का न सिर्फ़ सम्मान करूँ बल्कि उसे अपनाऊँ भी।
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बहुत अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है आप ने!
— शास्त्री जे सी फिलिप
— हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें